शुक्रवार, 25 मई 2012

सखी


नन्हें -नन्हें पग सखी ,
 चले  हम  साथ थे.
जामुन  के पेड़ तले,
जामुन हमने बीने थे.

स्कूल डग -मग  चलते हमने,
बस्ते एक दूजे के लादे थे.
हंसी ठिठोली कर कक्षा में,
पाठ हमने याद किए थे.

साईकिल सीखी संग जब,
पंक्ति बद्ध चलाते जाते थे.
बारिश की फुहार में तो,
साईकिल और तेज़ भागते थे.

संग  बैठ भविष्य के कितने,
ताने - बाने बुने  थे.
बढती जवानी के कदमों में,
सुखद नीड़ के सपने चुने थे.


अपने - अपने नीड़  पिरोते,
स्व दुनिया में गुम हुए.
और दुनियादारी में भी,
सखी,  तुम यादों में साथ रहे.

उषा की कोमल रश्मि सखी,
तुम सुख का एहसास रही.
तुमसे मिलने को सखी,
फिर ये पग चले हें,
आओ सखी, पग मिला,
कुछ और हम साथ चलें................   

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