रविवार, 10 अप्रैल 2011

फूल और पथिक

तन्हा उस कंकरीट की,
दरार से उगता हुआ
वो पौधा,
खिला था जिसमे,
खिलखिलाता वो फूल।

पढ़ी थी नज़र उसमे
तुम्हारी कोमल,
आश्चर्यचकित, रोमांचित हो,
पूछा तुमने उस पौधे से,
कौन हो तुम?

तो सुनो ऐ पथिक-
बोला वो फूल,
"मै हू वो,
जड़े जिसकी हें, गर्भ मै गहरी,
हवा के थपेड़े, गर्मी के लपेड़े,
कड़कती बिजली, वृष्टि घनघोर,
कर देते जिसे, खिलने को मजबूर।"

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