शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

basant....

हर बसंत का अपना उन्माद ,
हर बसंत की अपनी जवानी ,
हर बसंत का अपना सृजन ,
हर बसंत की अपनी कहानी।

घर पिछवाड़े आम बौर लिए भरपूर है ,
बाड़े के केले में भी फूल है ,
आंगन में गेंदे है महकते ,
छत  पे  पंछियों के झुण्ड है चहकते ,
तितलियों ने इंद्रधनुष है बनाये ,
लागे है इस बार बसंत कुछ ख़ास है। ....... 

रविवार, 4 नवंबर 2012

jijivisha: वो दिन,,,,,

jijivisha: वो दिन,,,,,: सुबह धुंदली-धुंदली थी, सीढ़ी में माँ डगमगाई थी, ट्रेन भी दौड़ के पकड़ी थी, कुछ हाथ से छूटा-छूटा लगा था, दिन भी डूबा-डूबा था, चाँद भी अधूर...

वो दिन,,,,,

सुबह धुंदली-धुंदली थी,
सीढ़ी में माँ डगमगाई थी,
ट्रेन भी दौड़ के पकड़ी थी,
कुछ हाथ से छूटा-छूटा लगा था,
दिन भी डूबा-डूबा था,
चाँद भी अधूरा था।

धत,,,,,,,,,,
सुबह सूरज ठंडक लिए था,
सीढ़ी पे माँ डगमगा के संभली थी,
ट्रेन भी टाइम पे पकड़ी थी,
छूटते-छूटते दोबारा पाया था,
दिन भी खिल उठा था,
अर्ध चाँद भी मुस्कुरा उठा था।

शुक्रवार, 25 मई 2012

jijivisha: सखी

jijivisha: सखी: नन्हें -नन्हें पग सखी ,  चले  हम  साथ थे. जामुन  के पेड़ तले, जामुन हमने बीने थे. स्कूल डग -मग  चलते हमने, बस्ते एक दूजे क...

jijivisha: सखी

jijivisha: सखी: नन्हें -नन्हें पग सखी ,  चले  हम  साथ थे. जामुन  के पेड़ तले, जामुन हमने बीने थे. स्कूल डग -मग  चलते हमने, बस्ते एक दूजे क...

सखी


नन्हें -नन्हें पग सखी ,
 चले  हम  साथ थे.
जामुन  के पेड़ तले,
जामुन हमने बीने थे.

स्कूल डग -मग  चलते हमने,
बस्ते एक दूजे के लादे थे.
हंसी ठिठोली कर कक्षा में,
पाठ हमने याद किए थे.

साईकिल सीखी संग जब,
पंक्ति बद्ध चलाते जाते थे.
बारिश की फुहार में तो,
साईकिल और तेज़ भागते थे.

संग  बैठ भविष्य के कितने,
ताने - बाने बुने  थे.
बढती जवानी के कदमों में,
सुखद नीड़ के सपने चुने थे.


अपने - अपने नीड़  पिरोते,
स्व दुनिया में गुम हुए.
और दुनियादारी में भी,
सखी,  तुम यादों में साथ रहे.

उषा की कोमल रश्मि सखी,
तुम सुख का एहसास रही.
तुमसे मिलने को सखी,
फिर ये पग चले हें,
आओ सखी, पग मिला,
कुछ और हम साथ चलें................   

शनिवार, 5 नवंबर 2011

jijivisha: कुछ ऐसी ही एक सड़क,उस dynamite विस्फोट की याद दिल...

jijivisha:
कुछ ऐसी ही एक सड़क,
उस dynamite विस्फोट की याद दिल...
: कुछ ऐसी ही एक सड़क, उस dynamite विस्फोट की याद दिलाती हें, जिसने पनघट के पहाड़ को फोड़, जगह बनाई उस सड़क की, जो हें अब काली-कलूटी डामर की, म...

कुछ ऐसी ही एक सड़क,
उस dynamite विस्फोट की याद दिलाती हें,
जिसने पनघट के पहाड़ को फोड़,
जगह बनाई उस सड़क की,
जो हें अब काली-कलूटी डामर की,
मेरे गाँव को जाती हें,....
याद दिलाती हें उस dynamite विस्फोट की,
जिसने, स्त्रोतों के जीवन स्त्रोत जल ख़त्म किये,
गोरु-बाच( गाय-बछड़े) गाँव में कम किये,
सीढ़ी नुमा खेत बंजर किये.....
उसी डामर की कलि-कलूटी सड़क से ही,
इज्जा(माँ) ने भेजा परदेश,
ढूँढने उस जीवन जल स्त्रोत को.....
पर पाऊ कहाँ में अब उसे.....
आज भी इज्जा(माँ) भेजती हें,
हरेले की आशिक और गोलू की विभूति,
जो दिलाती हें याद बारम्बार,
मेरे गाँव की नाम माटी की,
और मडुए, झूंगर, भट्ट, गहत(अनाज)...
सब हरियाली भरी फसलो की.....

बुधवार, 24 अगस्त 2011

jijivisha: अद्भुत प्रकृति.....म्योर पहाड़....म्योर गाँव.........

jijivisha: अद्भुत प्रकृति.....म्योर पहाड़....म्योर गाँव.........: हरे-भरे फसलो से भरपूर सीढ़ी नुमा खेत,
खेतो के बीच फलो से लादे आम के दरख्त (वृक्ष),
पास ही जंगल, उचे,गगन चुम्बी, चीड़ो से भरपूर,
उनमे कुछ...

अद्भुत प्रकृति.....म्योर पहाड़....म्योर गाँव......

हरे-भरे फसलो से भरपूर सीढ़ी नुमा खेत,
खेतो के बीच फलो से लादे आम के दरख्त (वृक्ष),
पास ही जंगल, उचे,गगन चुम्बी, चीड़ो से भरपूर,
उनमे कुछ ठूठ से सूखे खड़े,
दूर नज़र आती हिमालय की श्रृंखलाएं,
कुछ तो हे हरेभरे, कुछ वीरान बंजर,
उनके बीच कही कही, जल लिए, बादलो के,
अनगिनत टुकरे.
और उनके भी परे धुप में चमकती,
हिमालय की बर्फीली चोटियाँ.
कही कही पहाड़ी में दिख रही हे, खिलखिलाती धूप,
और कही पहाड़ी पर हे पूर्ण छाव।
और एक अकेली पहाड़ी, पर तो बरस रही हे,
रिम-झिम, रिम-झिम, एकसार बरखा की बूंदे।
घाटी में, बहती, कल-कल करती, नदी की स्वछ धारा।
और उप्पर नीले आसमान में,
दक्षिण-पूर्व के ऑर,
दो-दो इन्द्रधनुष, पूर्णरूपें,
समस्त जीवन रंगों को समाये हुए।

पश्चिम की ऑर ढलते सूर्य देव,
अपनी उर्जा को किरणों के रूप में,
बिखेरते हुए।
आसमान में कही कुछ घनघोर काली घटाये।

जैसे प्रकृति ने रचा हो कोई रंगमंच ,
समस्त नज़ारा रोम-रोम को,
रोमांचित किये जा रहा हे।

प्रकृति एवेम जीवन के समस्त पहलू,
एक हे साथ विरले हे देखने को मिलते हे।

बुधवार, 10 अगस्त 2011

jijivisha: स्वतंत्र भारत

jijivisha: स्वतंत्र भारत

jijivisha: स्वतंत्र भारत

jijivisha: स्वतंत्र भारत: "सुसुप्त अवस्था में पड़े जवान और विद्वान् हे,
कर्मयोगी के हाथो में पड़ी बेड़ियाँ हे,
घूसखोर हुए अहम् भरे नेतागण हे,
निष्क्रिय हुआ देश का पजत..."

स्वतंत्र भारत

सुसुप्त अवस्था में पड़े जवान और विद्वान् हे,
कर्मयोगी के हाथो में पड़ी बेड़ियाँ हे,
घूसखोर हुए अहम् भरे नेतागण हे,
निष्क्रिय हुआ देश का पजतंत्र हे,
बेकार हुआ स्वतंत्रता सेनानियों का बलिदान हे,
फिर भी भारत हमारा स्वतंत्र हे।